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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि आपसी सहमति से बनें संबंध को रेप नहीं माना जा सकता है। कई बार ऐसा होता है कि सहमति से दोनों के बीच आपसी संबंध बनते हैं लेकिन रिश्ते में खटास आते ही बलात्कार का आरोप लगा दिया जाता है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की एक अदालत और हाईकोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को शादी का वादे करके एक विवाहित महिला से शारिरिक संबंध बनाने के आरोप से बरी कर दिया है।भले ही महिला ने अपने पति और तीन बच्चों को आरोपी शख्स के साथ रहने के लिए छोड़ दिया था। बता दें कि रेप का आरोपी व्यक्ति भी शादीशुदा था।
दरअसल दिल्ली में रहने वाले नईम अहमद को हाई कोर्ट ने सात साल कैद की सजा सुनाई थी, लेकिन न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कई कारणों से सहमति से बने शारीरिक संबंध में खटास आने के बाद अक्सर महिलाओं द्वारा बलात्कार का आरोप लगाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
महिला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने सही निष्कर्ष निकाला था कि अहमद ने शादी का वादा यौन संबंध बनाने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया था। वहीं अहमद के वकील राज के चौधरी ने कहा कि महिला की मोटी रकम की मांग को पूरा करने में असमर्थ रहने के बाद बलात्कार की शिकायत दर्ज की गई थी।
महिला शादीशुदा थी और उसके तीन बच्चे हैं। अपने पति और बच्चों को छोड़कर, वह 2009 में अहमद के साथ भाग गई और 2011 में एक लड़का पैदा हुआ। इसके बावजूद अहमद शादी से बचता रहा। वहीं 2012 में जब उसके मूल स्थान पर गई तो पता चला कि वह विवाहित है और पहले से ही उसके बच्चे हैं।
लेकिन इसके बाद भी महिला ने 2014 में अपने पति से तलाक ले लिया और अपने तीन बच्चों को उसके साथ छोड़ गई। चूंकि इन सबके बावजूद अहमद शादी से बचता रहा, जिसके बाद 2015 में महिला ने उसके खिलाफ बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई।