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सुशासन बाबू हैं राजनीति के कछुआ, वक्त अच्छा हो तो सिर बाहर निकालते हैं, नहीं तो सिर कर लेते हैं अंदर, पढि़ए पूरी रिपोर्ट
जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट
बिहार नेशन: लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां जोरों पर है। सभी राजनीतिक दल इस मुहिम में जुट गये हैं । इसी कड़ी में सीएम नीतीश कुमार ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की है।ऐसा माना जा रहा है कि वे पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में दौड़ में शामिल भी हैं। लेकिन नीतीश कुमार बार-बार ये दोहरा भी रहे हैं कि वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं।
इन सबके बीच सियासत के जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार सियासत में सधे कदम उठाने वाले नेता है। अभी उनके मन में क्या चल रहा है, इसका अंदाजा लगाने से पहले कुछ बातें समझ लेना जरूरी है। नीतीश की सियासी मंशा समझने से पहले अंबेडकर जयंती पर दिया गया उनका बयान याद कर लीजिए। पटना में अंबेडकर जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे नीतीश कुमार ने सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए भारतीय जनता पार्टी पर जमकर हमला बोला था।
कार्यक्रम में जेडीयू कार्यकर्ताओं ने जब नीतीश कुमार के पीएम बनने को लेकर नारे लगाने लगे, तब सुशासन बाबू ने हाथ जोड़ लिए। नीतीश कुमार ने कहा था, “एगो बात हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि मेरे बारे में मत नारा लगाइए। यही बनेंगे नेता… ये सब छोड़ दीजिए। हमको तो सबको एकजुट करना है। बिलकुल अच्छे ढंग से हो जाए माहौल जिससे देश को फायदा हो। खाली मेरा नमावा लीजिएगा तो बिना मतलब का चर्चा होगा। तो मेरा नाम मत लीजिए। हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं सब लोगों से। भाई मेरा नाम मत लीजिए, हम घूम रहे हैं तो हमहीं बनेंगे, ऐसा मत बोलिए प्लीज।” नीतीश कुमार के इस बयान के बड़े मायने हैं।
जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में बैक सपोर्ट कर हलचल लाना चाहते हैं। नीतीश सधे कदम उठाते हैं। उन्हें पता है कि देश में बहुमत वाली सरकार के विरोध में फ्रंट कभी सक्सेस नहीं रहा है। इसलिए वे सामने आकर खेलने से बच रहे हैं।
नीतीश कुमार के बारे में अंदरूनी रूप से जेडीयू नेताओं का कहना है कि देखिए नीतीश बाबू कछुए के सेल की तरह हैं। वक्त पड़ने पर अपना सिर बाहर निकालते हैं। वक्त उनके मन मुताबिक नहीं हो तो सिर को अंदर कर लेते हैं। साल 2020 के विधानसभा चुनाव को याद कीजिए। जेडीयू मात्र 43 सीटों पर सिमट गई थी। सहयोगी बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थी।
नीतीश कुमार तब तक चुप होकर बैठे रहे, जब तक बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से उनके सीएम बनने की बात पर मुहर नहीं लगी। इतना ही नहीं बीजेपी को चिरौरी तक करनी पड़ी। उसके बाद वे सीएम के पद पर आसीन हुए। नीतीश कुमार कई मौकों पर खुद अपने मन की बात नहीं कहते हैं। वे पार्टी के नेताओं या फिर अन्य दलों के राजनेताओं से खुद की बात कहलवाना पसंद करते हैं।
वहीं विपक्षी एकता की कवायद में उनकी एक्टिविटी पर ध्यान दीजिए। वे बिहार का दौरा करने के बाद दिल्ली के साथ देश के तमाम नेताओं के संपर्क में हैं। वे भले बार-बार ये कहें कि वे पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं।
सूत्रों की मानें, तो नीतीश कुमार का असली दर्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं। कहते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के गुट के नेताओं ने उन्हें भरोसा दिया था कि भविष्य में जब भी मौका मिलेगा, वे नीतीश को पीएम बनाएंगे। नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद नीतीश के सपने को झटका लगा। नीतीश कुमार के अंदर 2010 से ही पीएम बनने की इच्छा रही है।