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2012 से STET परीक्षा पास अभ्यर्थियों का छल्का दर्द,अब तक नहीं हुआ नियोजन
जब कोई पढ़ने के लिए गाँव से शहर जाता है तो उसके माता-पिता सोचते हैं कि वह प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर नौकरी लेकर उन्हें घर की जिम्मेवारियों से मुक्त कर देगा.
जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: जब कोई पढ़ने के लिए गाँव से शहर जाता है तो उसके माता-पिता सोचते हैं कि वह प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर नौकरी लेकर उन्हें घर की जिम्मेवारियों से मुक्त कर देगा. छात्र खूब मेहनत भी करते हैं. लेकिन दुःख तब होता है जब कम्पटीशन पास करने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिलती है. कुछ ऐसा ही हाल है 2012 से STET परीक्षा पास अभ्यर्थियों का भी. छात्रों ने शिक्षक बनने की आस लगाकर सरकार द्वारा निकाले गये परीक्षा भी पास की . लेकिन 2012 से STET परीक्षा पास अभ्यर्थियों का अभी भी नियोजन नहीं हुआ है. वे लगातार बहाली की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार केवल टाल मटोल का रवैया अपनाकर उन अभ्यर्थियों का नियोजन नहीं कर रही है.
2012 से STET परीक्षा पास इतिहास और सोशल साइंस विषय के अभ्यर्थियों ने तो कई बार आन्दोलन भी किया. वे कोर्ट की शरण में भी जा चुके हैं. लेकिन सरकार कोर्ट के फैसले को भी नहीं मान । ये अभ्यर्थी लगातर रिक्ती बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। STET 2012 की परीक्षा पास अभ्यर्थियों के संघ के अध्यक्ष धनंजय कुमार का कहना है कि हमलोग 8 वर्षों से परिक्षा पास कर बैठे हैं लेकिन हमलोगों का नियोजन नहीं लिया जा रहा है जबकि नई परीक्षा का सरकार आयोजन कर रही है।
प्रदेश अध्यक्ष धनजंय कुमार एवं संरक्षक आदित्य नारायण पाण्डेय एवं संघ के प्रदेश सचिव राजेश कुमार ने बताया कि वे शिक्षा मंत्री से लेकर सांसदों –विधायकों और अधिकारियों तक गुहार लगा चुके हैं लेकिन सरकार कुछ नहीं सुनती है। इनका ये भी कहना है कि स्कूलों के भवन तो बन गये हैं लेकिन उसमें शिक्षक नहीं हैं। सीट खाली के बावजूद भी सरकार शिक्षकों की बहाली नहीं कर रही है केवल चरण पर चरण करते –करते छठे चरण तक अभ्यर्थियों को पहुचा दी है. किसी भी जिले में इतिहास और सोशल साइंस में रिक्ती नहीं है . केवल नाम मात्र की रिक्ती है जो सरकार खानापूर्ति कर रही है.
वहीं संघ के संरक्षक आदित्य नारायण पाण्डेय ने बताया कि केस नम्बर CWJC 2095 /19 में माननीय उच्च न्यायालय, पटना के द्वारा सरकार को यह निर्देश भी दिया गया है कि 2012 से STET पास अभ्यर्थियों का छठे चरण के तहत नियोजन जून 2019 तक की सारी रिक्तियों को जोड़कर की जाए लेकिन सरकार नहीं सुन रही है। उन्होंने कहा की उनके कई साथी अभ्यर्थियों की गरीबी के कारण मौत भी हो चुकी है। बात आती है कि अब इन परीक्षार्थियों का इसमें क्या दोष कहा जाएगा. ये सभी सरकार की गलत नीतियों के शिकार हैं.