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विशेष रिपोर्ट: कभी क्षेत्रीय स्तर पर मनाया जाने वाला यह लोकपर्व अब वैश्विक पहचान बनाने लगा है, जरूर पढें. .
जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट
बिहार नेशन: सूर्योपासना का महापर्व छठ हमेशा से उत्तर भारत में विराट पर्व के रूप में माना जाता रहा है। इस पर्व की महता लोगों के दिलों में इतनी अधिक है कि वे कहीं भी रहते हैं तो आने का हर संभव प्रयास करते हैं। चाहे इसके लिए उन्हें कितने भी पैसे न खर्च करना पड़े। इस महापर्व का विस्तार अब देश ही नहीं विदेशों तक में हो चुका है। अब यह लोकपर्व वैश्विक पहचान बना चुका है। दरअसल सूर्योपासना का पर्व छठ प्रकृति की अनंत, अक्षय विराटता की उपासना है। खास बात यह है कि ग्लोबल दुनिया में छठ पर्व की धार्मिंक-सांस्कृतिक मान्यताएं एवं स्थापनाएं पूर्ववत हैं और विरासत का विस्तार निरंतर हो रहा है। ग्लोबल दुनिया में यह पर्व बिहार की अस्मिता को अलग पहचान देता है।
वहीं छठ पर्व की संस्कृति दूर देश में भी जीवित है। छठ पूजा जिस आस्था के साथ अपने यहां मनाई जा रही है, सात समंदर पार भी लोग इस महापर्व को उतनी ही आस्था से मनाते हैं। दुबई, नेपाल, फिजी, सूरिनाम, मॉरिशस, सिंगापुर, तंजानिया, केन्या से लेकर इंगलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका तक में भी छठ मनाया जा रहा है। यह पर्व न सिर्फ मनाया जा रहा है बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित भी हो रहा है। इसने बिहार की सांस्कृतिक विरासत को न सिर्फ थामे रखा है, बल्कि बढ़ा भी रहा है। छठ हमें अपनी मिट्टी से जोड़ता है। उससे जुड़ाव की अनुभूति देता है।
विदेशों में रहकर नौकरी करनेवाले लोगों का कहना है कि ‘छठ अपनी लोकरंजकता और नगरीकरण के साथ गांवों से शहर और विदेशों में पलायन के चलते न सिर्फ भारत के तमाम प्रांतों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है बल्कि मॉरिशस, नेपाल, त्रिनिडाड, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, हालैंड, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में भी भारतीय मूल के लोगों द्वारा अपनी छाप छोड़ रहा है।
कहते हैं यह पूरी दुनिया में मनाया जाने वाला अकेला ऐसा लोकपर्व है, जिसमें उगते सूर्य के साथ डूबते सूर्य की भी विधिवत आराधना की जाती है। यही नहीं इस पर्व में न तो कोई पुरोहिती, न कोई मठ-मंदिर, न कोई अवतारी पुरुष और न ही कोई शास्त्रीय कर्मकांड होता है। मॉरिशस में इकट्ठा होकर लोग ये पर्व मनाते हैं और अपने बच्चों को इसके बारे में बताते हैं। कोई भी त्योहार हर किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट लाता है वहीं ये त्योहार भारतीय बाजार और आर्थिक कारोबार को भी बढ़ाता है। देश की आर्थिक उन्नति में इन पर्व-त्योहारों का बड़ा योगदान होता है। छठ का पर्व भी हमारे बाजार के छोटे कारोबारियों के जीवन में खुशियां लेकर आता है।
यह दिवाली के छठवें दिन मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्योहार है जो उत्तर भारत में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और असम के कुछ हिस्सों, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में विशेष रूप से मनाया जाता है। हालांकि आजकल लोग आजीविका के लिए अलग अलग राज्यों में जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप इस त्योहार को पूरे देश में मनाते हुए देखा जा सकता है। इस पूजा में, लोग भगवान सूर्य और उनकी बहन छठ माता की आराधना करते हैं। छठ व्रती तीन दिनों का उपवास रखते हैं और साथ में प्रार्थना भी करते हैं। वे उगते सूरज के साथ-साथ अस्त होते हुए सूर्य की भी विधि विधान से प्रार्थना करते हैं।
छठ पूजा का महत्त्व इसलिए और ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि इस त्योहार में बहुत सारे लोग हर साल अपने मूल स्थान पर जाते हैं, जहां उनके परिवार, गांव, समाज के लोग रहते हैं। इस पर्व में सामूहिकता और सामाजिकता का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। गांव में या अपने पैतृक निवास पर वर्षो से छूटे हुए दादा-दादी, चाचा-चाची, भैया-भाभी, मौसा-मौसी, फुआ, फूफा जैसे सभी रिश्तों में नई ताजगी आ जाती है। सभी लोग मिल-जुलकर पारंपरिक लोक भक्ति गीत गाते हैं एवं प्रसाद तैयार करते हैं, जिसमें पारंपरिक पकवान ठेकुआ, कचवनिया, मिठाई इत्यादि बनता है।
इस छठ महापर्व में प्रसाद तैयार करने के लिए आम की लकड़ियों की व्यवस्था की जाती है। प्रसाद को हाथ से बने चूल्हे पर अलग से पका कर बनाया जाता है। इन तीन दिनों तक समूचा परिवार और समाज एकाकार होकर पूरा आनंद लेते हैं। परिवार के सभी सदस्य व्रतियों एवम् अन्य महिलाओं के साथ प्रार्थना करने के लिए घाट पर जाते हैं। वास्तव में यह एक अद्भुत अनुभव है और हम सभी हर साल इस त्योहार का इंतजार करते हैं। छठ पूजा मनाने के पीछे अनेकों पौराणिक, लोक प्रचलित कथाएं सुनाई जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि जब पांडवों ने अपना सब कुछ खो दिया था, तब द्रौपदी ने इस व्रत को किया और एक बार फिर से सब कुछ धन्य हो गया।
सूर्यपुत्र कर्ण भी भगवान सूर्य की प्रार्थना करने के लिए उनका ध्यान करते थे और परिणामस्वरूप, उन्होंने उन उपयोगी पाठों को सीखा। राम जी और सीता जी ने भी वनवास से लौटने पर तीन दिनों तक उपवास रखा और छठ माता की प्रार्थना की थी। एक राजा जिसका नाम प्रियव्रत था और वह बहुत निराश था क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी, फिर एक महर्षि ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और राजा से अपनी पत्नी को यज्ञ की खीर देने को कहा। उसकी पत्नी ने वह खाया, लेकिन बच्चा मृत पैदा हुआ।
राजा पूरी तरह से निराश हो गया, जब वह अपने बेटे की अंतिम यात्रा के लिए श्मशान गया, तो वह खुद को भी मारना चाहता था। तभी अचानक वहां एक दिव्य महिला प्रकट हुई, वह देवसेना जो षष्ठी या छठी के नाम से जानी जाती थी, और उसने राजा से खुद को मारने के बजाय छठ माता की प्रार्थना करने के लिए कहा। फिर प्रियव्रत ने भी छठ पर्व किया भगवान सूर्य की कृपा से उन्हें एक संतान की प्राप्ति हुई जिसे पाकर वह धन्य हो गया। लोक मान्यतानुसार छठ माता की प्रार्थना और व्रत करने से भक्तों के घर में सुख-समृद्धि आती है सूर्य नारायण और षष्ठी माता भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
छठ पर्व भारत के कृषि संस्कृति का प्रतिबिंब है। छठ पूजा उत्तर भारत के सबसे पारंपरिक त्योहारों में से महत्वपूर्ण पर्व है। नई पीढ़ी को संस्कार सीखना चाहिए और अपनी परंपराओं का पालन करना चाहिए और सूर्य उपासना के इस पर्व से भारतीय संस्कृति की पहचान पूरी दुनिया में फैलानी चाहिए। इस महापर्व के बारे में लोगों का बहुत दृढ़ विश्वास है, इसीलिए हर साल वे इस अवसर को बहुत ही पवित्रता और स्वच्छता से मनाते हैं। यह त्योहार दिनों दिन सभी जगह लोकप्रिय होते जा रहा है।