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विशेष रिपोर्ट: आखिर 80 प्रतिशत पूराने मुखिया क्यों हार गये, प्रथम चरण का परिणाम कई मायनों में संदेश देता है,पढ़ें
जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया जारी है। दो चरणों के मतदान भी हो चुके हैं । लेकिन इस पंचायत चुनाव के जो परिणाम सामने आ रहे हैं वे कहीं न कहीं चौकाने वाले हैं ।
प्रथम चुनाव के परिणाम से देखा जा रहा है कि जनता ने वैसे जनप्रतिनिधियों को सिरे से खारिज कर दिया है या यूँ कहे की नकार दिया है जो अपने कार्यों के प्रति सजग और सक्रिय नहीं रहे हैं । यह देखा जाय तो एक दूरगामी संदेश है ऐसे जनप्रतिनिधियों के लिये जो अपने दायित्वों के प्रति सजग नहीं हैं ।
करीब 80 फीसद से अधिक पुराने मुखिया का हार जाना छोटी बात नहीं है। इससे स्पष्ट है कि हारने वाले निवर्तमान मुखिया जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। यहाँ तक की कई मुखिया तो इतने भ्रष्टाचार में संलिप्त पाये गये की वे जेल की हवा खा रहे हैं ।
लेकिन कई अभी भी बाहर हैं । कई तरह की योजनाओं का पैसा की निकासी भी हो गई लेकिन धरातल पर काम नहीं हुआ। इसलिए ग्रामीण मतदाताओं में इनके पांच वर्षों के कामकाज एवं तौर-तरीकों के प्रति जबरदस्त नाराजगी थी और मौका मिलते ही उन्होंने इनको बदल दिया।
वहीं माना जा रहा है कि शेष बचे दस चरणों के चुनाव परिणाम भी कुछ इसी तरह के रहने वाले हैं। ऐसे में जीतने वाले सभी नए मुखिया को चाहिए कि वे अपने दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन करते हुए जनता की अपेक्षा पर प्रारंभ से ही खरा उतरने की कोशिश करें।
इसके लिए ग्रामीणों की वास्तविक समस्याओं की सही पहचान जरूरी है। देखा जाए तो आज भी गांवों में ही बड़ी आबादी बसती है, लेकिन सुविधा के नाम पर यहां अब भी कुछ खास नहीं है। यह संकट विकास के शहरी मॉडल की वजह से पैदा हुआ है।
अधिसंख्य गांव विभिन्न बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं। समुचित विकास की कमी से गांवों में पनप रहे असंतोष को दूर करने की जरूरत है। सरकार इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से निरंतर काम कर रही है। सड़क निर्माण, बिजली सहित कुछ अन्य क्षेत्रों में बेहतर काम हो रहा है।
इसकी गति और बढ़ाते हुए सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, जलनिकासी एवं जल प्रबंधन आदि पर विशेष ध्यान देना होगा।
अच्छी बात है कि प्रशासन पहले की तुलना में ज्यादा सक्रिय हुआ है, लेकिन उसे अभी और प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली में अपेक्षित सुधार के लिए समूचे राज्य में व्यापक स्तर पर अभियान चलाया जाना समय की मांग है। गांवों में आर्थिक सुधार और समाजिक बदलाव की गति तेज करनी चाहिए।
वहीं गावों में आर्थिक और सामाजिक सुधार की जरूरत है। इसकी गति तेज करनी होगी । साथ ही ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी बढ़ानी होगी।
साथ ही भूमि सुधार को बेहतर तरीके से लागू करना होगा । लोगों को आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराना होगा।