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उदयपुर हत्या पर विशेष: धार्मिक अतिवाद हमेशा मानवता के लिए हानिकारक होता है

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जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट 

बिहार नेशन: भारत हमेशा से आपसी सौहार्द के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन देश में धार्मिक असहिष्णुता इतनी बढ़ने लगी है कि लोग अब अपने हाथों में कानून को लेने लगे हैं । सरेआम तालीबानी स्टाइल में सजा देने लगे हैं। राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल की हत्या भी इसी तरह की है। जिसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है। कन्हैयालाल के शव को धड़ से दो धार्मिक उन्मादियो ने अलग कर दिया। लेकिन कन्हैयालाल की हत्या कई गंभीर सवाल खड़े करती है।

क्या हम इतने असहिष्णु होने लगे हैं कि अपने देश की कानून व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा ! उदयपुर की घटना ने पूरे देश के लोगों को झकझोरकर रख दिया है। सोंचने पर मजबूर कर दिया है। अगर किसी को शिकायत है तो उसके लिए कानून में प्रावधान किये गये हैं। न कि अपनी हाथों से खुद ही सजा दे दें। संविधान की रक्षा करना देश में रहनेवाले प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

थोड़ी देर के लिए सोंचिए अगर प्रत्येक व्यक्ति इसी तरह का फैसला लेने लगे तो देश का क्या होगा! आप कहां जाएंगे , कहां रहेंगे। ये आज सोंचने की जरूरत है। ये बात समझ लें कि धार्मिक अतिवादी सोंच हमेशा मानवता के लिए हानिकारक होता है। भारत कोई सीरिया या अफगानिस्तान नहीं है। यहाँ के अपनी कायदे कानून हैं । यहाँ सजा के लिए अलग तरह के प्रावधान हैं।

यहाँ एक बात और सोंचने कि है कि कन्हैयालाल को अगर कुछ धमकियाँ मिल रही थी तो प्रशासन ने उसे सुरक्षा मुहैया क्यों नहीं कराया। उसे उस समय तक सुरक्षा देनी चाहिए थी जबतक की मामला शांत न हो जाय्। धार्मिक मामले हमेशा संवेदनशील होते हैं । सरकार की जिम्मेवारी बनती है कि ऐसे मामले पर अंकुश लगाएं । किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेंस न पहुंचे।

खैर अब इस मामले की जांच एनआईए के हाथों तक जा पहुंची है। केवल दोनों दोषियों को सजा देने से कुछ नहीं होगा बल्कि इसकी तह तक जाने की जरूरत है। कहां से दोनों के अंदर इतनी नफरत का जहर भरा गया। अगर देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ गया तो देश से गरीबी और शिक्षा का मुद्दा कोसो दूर चला जाएगा। ये बात सभी को आज सोंचने की जरूरत है। चाहे वह किसी भी मजहब या संप्रदाय से हो। और अंत में कन्हैया के परिजनों को कानून इंसाफ देगा न कि कोई तालीबानी तरीका।

(ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं )

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