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पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, नहीं लगेगी नीतीश सरकार की जातीय गणना पर रोक, याचिका की खारिज

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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट

बिहार नेशन: बिहार में एकबार फिर से जातीय गणना को लेकर चर्चा तेज हो गई है। आज इस मामले में पटना हाईकोर्ट से नीतीश सरकार को बड़ी जीत मिली है। इस मामले में मंगलवार को पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। पटना हाईकोर्ट ने बिहार में सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण कराने को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।मतलब अब बिहार में जातीय सर्वेक्षण चलता रहेगा।

आपको बता दें कि नीतीश सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में 6 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन याचिकाओं में जातिगत जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गई थी।

वहीं सरकार ने नगर निकायों एवं पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को कोई आरक्षण नहीं देने का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 फीसदी और एसटी को एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है। राज्य सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है। सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया था कि इसलिए भी जातीय गणना जरूरी है

आपको बता दें कि इस मामले में पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की बेंच ने बीते महीने लगातार 3 जुलाई से 7 जुलाई तक पांच दिनों तक इस मामले में याचिकाकर्ताओं और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं थी। हाई कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था । अब 25 दिन बाद इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

पटना हाई कोर्ट में सुनवाई के अंतिम दिन भी राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया था कि यह सर्वेक्षण है। इसका मकसद आम नागरिकों के बारे में सामाजिक अध्ययन के लिए आंकड़े जुटाना है। इसका उपयोग आम लोगों के कल्याण और हितों के लिए किया जाएगा।

महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट में कहा था कि ये स्वैच्छिक सर्वेक्षण वाली जनगणना है जिसका लगभग 80 फीसदी कार्य पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। सर्वेक्षण से किसी की निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है। पीके शाही ने कोर्ट में कहा कि बहुत सी सूचनाएं पहले से ही सार्वजनिक होती हैं।

बिहार सरकार का जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में तर्क ये है कि 1951 से एससी और एसटी जातियों का डेटा पब्लिश होता है, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का डेटा नहीं आता है। इससे ओबीसी की सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल होता है। 1990 में केंद्र की तब की वीपी सिंह की सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश को लागू किया। इसे मंडल आयोग के नाम से जानते हैं। इसने 1931 की जनगणना के आधार पर देश में ओबीसी की 52% आबादी होने का अनुमान लगाया था। मंडल आयोग की सिफारिश के आधार पर ही ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जाता है।

गौरतलब हो कि नीतीश सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास कराया था। हालांकि, केंद्र सरकार इसके विरोध में है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया था कि जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी।

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