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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में मुखिया को लगातार कई शक्तियाँ मिल रही हैं । पहले उन्हें हथियार के साथ अंगरक्षक रखने का अधिकार मिला और अब उन्हें एक और शक्ति सरकार ने दे दिया है। अब फसलों की सुरक्षा के लिए मुखिया जंगली जानवरों के शिकार का निर्णय अपने विवेक से कर सकेंगे । यह निर्णय बिहार के वन क्षेत्र की बाहर की जमीन पर फसलों की सुरक्षा के लिए लिया गया है।
इसके पहले इसके लिए एक्सपर्ट शूटर को चिट्ठी भेज कर बुलाया जाता था और ऐसे जानवरों का शिकार करवाया जाता था। लेकिन अब यह शक्ति मुखिया को मिल गई है। इस संबंध में हाल ही में राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है। इसके बाद अब जानवरों से फसलों की सुरक्षा के बारे में निर्णय लेने के लिए फॉरेस्ट अधिकारियों पर मुखिया निर्भर नहीं रह गये हैं।
वहीं सरकार की नयी व्यवस्था पर वैशाली जिले में अमल शुरू हो चुका है। वहीं, वन क्षेत्र के अंदर की जमीन पर फसलों की सुरक्षा के लिए जानवरों का शिकार करवाने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारियों की अनुमति लेनी होगी। इसमें मुख्य रूप से डीएफओ शामिल हैं।
आपको बता दें कि इन जंगली जानवरों से सबसे अधिक नुकसान मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, वैशाली, बक्सर, भोजपुर आदि जिलों में है। ऐसे में राष्ट्रीय वन्य प्राणी परिषद ने एडवाइजरी जारी कर कहा कि फसलों को बचाने के लिए जानवरों का शिकार करने का निर्णय लेने का अधिकार पंचायती राज संस्थाओं को दिया जाये। इसके बाद वन विभाग के बाहर फसलों के नुकसान के बारे में पर्यावण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की पहल पर राज्य सरकार ने मुखिया को निर्णय लेने का अधिकार दे दिया।
मिली जानकारी के अनुसार राज्य के कई हिस्सों में नील गाय (घोड़परास) और जंगली सूअर से खड़ी फसलों की क्षति पहुंचती हैं। अब वन विभाग के बाहर फसलों के नुकसान को बचाने के लिए मुखिया इसे मारने का आदेश दे सकते हैं। इन्हे इसका अधिकार दिया गया हैं।