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अब नहीं चलेगा मनरेगा में भ्रष्टाचार, बिचौलियों का खत्म होगा खेल, सरकार कर रही है कानून को सख्त बनाने की तैयारी

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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट

बिहार नेशन: मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी में किस तरह से भ्रष्टाचार वयाप्त है वह किसी से छुपी नहीं है। लोग अभी भी बिचौलियों के शिकार हो रहे हैं और बड़े पैमाने पर धांधली होती है। लेकिन अब इन गड़बड़ियों को लेकर सरकार भी सख्त हो गई है और इसमें और अधिक सुधार के लिए तैयारी कर रही है ताकि बिचौलियों की इंट्री को रोका जा सके। अगर पीछले दो वर्षों की ही बात करें तो मनरेगा में कई गड़बड़ियां देखने को मिली हैं ।

केंद्र सरकार ने 2022-23 के लिए मनरेगा के तहत 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। यह चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान (आरई) में दिए गए 98,000 करोड़ रुपये से 25 फीसदी कम है। 2022-23 के लिए आवंटन चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान (बीई) के बराबर है।एक अधिकारी ने बताया कि पिछले दो साल में बजट अनुमान के मुकाबले संशोधित अनुमान काफी अधिक रहा है। पाया गया है कि बिचौलिये योजना के तहत लाभार्थियों के नाम दर्ज करने के लिए पैसे ले रहे हैं।

मनरेगा

उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण सीधे व्यक्ति तक धन पहुंचाने में सफल रहा है। फिर भी ऐसे बिचौलिये हैं, जो लोगों से कह रहे हैं कि मैं आपका नाम मनरेगा सूची में डाल दूंगा। इसके लिए आपको नकद हस्तांतरण के बाद वह राशि मुझे वापस देनी होगी। यह बड़े पैमाने पर हो रहा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय इस पर सख्ती करेगा।

मनरेगा

वहीं अधिकारियों का यह भी कहना है कि इसमें बड़े पैमाने पर लाभुकों और बिचौलियों के बीच मिलीभगत होती है। दरअसल होता यह है कि लाभार्थी बिचौलियों को कुछ हिस्सा मिल जाता है लेकिन उन्हें काम पर नहीं जाना होता है। इस तरह कई फर्जी एकाउंट खोले जाते हैं जिनके खाते में पैसा तो चला जाता है लेकिन वह उसके वाजिब हकदार नहीं होते हैं । इसमें सभी की मिलीभगत होती है। इसका परिणाम यह होता है कि कार्य नहीं हो पाता है। हालांकि सरकार पैसे देने के मामले में काफी उदार रही है।

अधिकारी ने कहा, ”सरकार पिछले दो वर्षों में मनरेगा कोष आवंटित करने में बहुत उदार रही है। हमने 2020-21 में 1.11 लाख करोड़ रुपए जारी किए, जबकि 2014-15 में यह आंकड़ा 35,000 करोड़ रुपए था।”

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