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पति की लंबी आयु के लिए सुहागिन महिलाएं ऐसे करें वट सावत्री पुजा, ये है शुभ मुहूर्त: कर्मकांड मुकेश पाठक
जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: भारत में वट सावित्री व्रत का पूजन शुक्रवार 19 मई को विधि-विधान से होगा। इस दिन सुहागिनें 16 श्रृंगार करके बरगद के पेड़ की पूजा कर फेरें लगाती हैं ताकि उनके पति दीर्घायु हों। प्यार, श्रद्धा और समर्पण का यह भाव इस देश में सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी कहता है। इस सावित्री व्रत के बारे में औरंगाबाद जिले के मदनपुर के पाठक बिगहा निवासी कर्मकांड मुकेश पाठक ने विशेष जानकारी देते हुए बताया कि इसी दिन देवी सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। सनातन परंपरा में वट सावित्री पूजा स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे करने से हमेशा अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीष प्राप्त होता है।
उन्होंने बताया कि कथाओं में उल्लेख है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को ऐसा करने से रोकने के लिए तीन वरदान दिये। एक वरदान में सावित्री ने मांगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने। यमराज ने ऐसा ही होगा कह दिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं और बिना पति के संतान कैसे संभव है। सावित्री की बात सुनकर यमराज को अपनी भूल समझ में आ गयी कि, वह गलती से सत्यवान के प्राण वापस करने का वरदान दे चुके हैं। जब सावित्री पति के प्राण को यमराज के फंदे से छुड़ाने के लिए यमराज के पीछे जा रही थी उस समय वट वृक्ष ने सत्यवान के शव की देख-रेख की थी। पति के प्राण लेकर वापस लौटने पर सावित्री ने वट वृक्ष का आभार व्यक्त करने के लिए उसकी परिक्रमा की इसलिए वट सावित्री व्रत में वृक्ष की परिक्रमा का भी नियम है।
ये है पूजा की विधियाँ
उन्होंने पूजा-अर्चना की विधियों के बारे में बताया कि सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, आम फल और मिठाई से वट वृक्ष की पूजा कर सावित्री, सत्यवान और यमराज की कथा श्रवण कर पूजा करें। ब्राह्मण देव को दक्षिणा आदि सामग्री दान करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार, 5 बार, 8 बार, 11 बार, 21 बार, 51, 108 जितनी परिक्रमा कर सके करें। पूजा के बाद वटवृक्ष से सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें।
उन्होंने आगे बताया कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन वटवृक्ष की पूजा का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य एवं स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। कहा कि बरगद के पेड़ को वट का वृक्ष कहा जाता है। पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्माजी, तने में विष्णुजी और डालियों एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है।
ये है पूजा-अर्चना का शुभ मुहूर्त
इस पूजा के शुभ मुहूर्त के बारे में उन्होंने बताया कि इस बार 18 मई 2023 गुरुवार को रात 9 बजकर 42 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 19 मई 2023 को रात 9 बजकर 22 मिनट पर होगा। इसलिए उदयातिथि के मुताबिक वट सावित्री का व्रत 19 मई 2023 यानी शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। जहां पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 19 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।