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मंथन: क्या, बिहार में रोजगार मांगने पर होगी लाठी से पिटाई ? क्या!अभ्यर्थियों को ADM साहब द्वारा पीटना सही है?
जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में नौकरी की मांग कर रहे नौजवानों के उपर एकबार फिर से डंडों की बरसात हुई है। पिटाई भी इतनी की गई है कि किसी अभ्यर्थी का पैर टूटा है तो किसी का हाथ तो किसी की आंख में गहरी चोट आई है। बस इन शिक्षक पात्रता पास अभ्यर्थियों का दोष इतना था कि वे कई वर्षों से शिक्षक नियोजन के लिए भर्ती करने की मांग कर रहे थे। यह घटना सोमवार के राजधानी पटना की है।
सोमवार को शिक्षक नियोजन को लेकर प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों पर पुलिसवालों की बर्बर पिटाई से हर कोई अचंभित है। लोगों का कहना है क्या बिहार में अपनी हक के लिए शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने का भी हक किसी को नहीं है ! क्या इन पुलिसवालों की संवेदना इतनी मर गई है कि वे निहत्थे अभ्यर्थियों पर क्रूरता पूर्वक लाठीचार्ज कर देते हैं। क्या, इन पुलिसवालों ने और इनके अधिकारियों ने इस तरह से नेताओं को या अधिकारियों के बच्चों को प्रदर्शन करते वक्त कभी पीटा है ? बिल्कुल नहीं। तो फिर इन शिक्षक पात्रता पास अभ्यर्थियों का क्या दोष था जो इन्हें दो-दो किलोमीटर तक दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। इन पुलिसवालों ने किसी अभ्यर्थी का हाथ-पैर तोड़ दिया तो किसी की आँख में गहरी चोट आई है। कई महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार कर महिलाओं को भी पुरूष पुलिसवालों ने पीटा।
यहाँ सवाल यह उठता है कि जब राज्य सरकार को इन छात्रों को नौकरी ही नहीं देनी थी तो फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा क्यों ली गई थी ? आज बिहार में सरकारी स्कूलों की हालत कितनी बद से बदतर है यह भला किसे नहीं पता है ? लेकिन आज तक केवल सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को जनगणना, पोशाक, मिड डे मिल, कभी पशुओं की गिनती कार्य समेत कई गैर शैक्षणिक कार्यों में लगा दिया जाता है। आखिर ये भी सोचने की बात है कि यह मिड डे मिल सरकारी स्कूलों में मिलता है फिर भी गरीब से गरीब अभिभावक भी अपना पेट काटकर क्यों प्राइवेट स्कूलों में ही बच्चों को पढ़ाते हैं । इसे भी समझने की जरूरत है। स्कूलों में भले ही खाने के मेन्यू लिखे होते हैं लेकर खानों की क्या गुणवत्ता बच्चों को मिलती है यह किसी से छुपी नहीं है। दाल के नाम पर पानी दे दिया जाता है। जो अपने घरों में एक गरीब भी वैसा नहीं खाता है।
राज्य में स्कूलों की स्थिति यह है कि भवन तो बने हैं लेकिन शिक्षक नहीं है। 300-300 बच्चों को कई स्कूलों में दो तीन मास्टर के भरोसे चलाया जा रहा है। क्या सरकार शिक्षकों और छात्रों के इसी अनुपात के बदौलत बिहार को शिक्षा का हब बनाएगी। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि पटना के एडीएम साहेब ने एक प्रदर्शनकारी छात्र को इतनी निर्ममता से पीटा है कि उसके कान के पर्दे तक फटने की खबर आ रही है।
क्या एडीएम केके सिंह को संविधान पर भरोसा नहीं था जो उन्होंने हाथ में तिरंगा लिये हुए उस निहत्थे अभ्यर्थी को जमीन पर पटककर लाठी डंडे से पीटा। क्या उन्हें यही ट्रेनिंग दी जाती है? क्या इसके लिए कोर्ट नहीं है? क्या एडीएम साहब ही ऑन स्पॉट फैसला करेंगे ? अगर इसी तरह सभी करने लगें तो फिर यह घटना स्वयं अफसर बाबुओं के साथ भी तो शुरू होने लगेगी। लोग अपने हाथ में कानून लेने लगेंगे। फिर संविधान का क्या होगा ? अफसरशाही की भी एक सीमा होनी चाहिए।
खैर प्रशासन द्वारा बर्बर तरीके से पिटाई का वीडियो वायरल होने के बाद डिप्टी सीएम तेजस्वी ने अधिकारियों के प्रति नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने तत्काल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि यह सरकार आप नौजवान छात्रों को रोजगार देने के लिए ही बनी है। आप हमें थोड़ा समय दें। उन्होंने कहा कि उन्होंने डीएम से बात की है कि छात्रों की इस तरह से पिटाई क्यों की गई है आपके अधिकारियों द्वारा। इसकी जांच करें और दोषी के खिलाफ कड़ी कारवाई करें । डीएम द्वारा भी कहा गया है कि मामले में जांच कमिटी बना दी गई है। रिपोर्ट आते ही कारवाई की जाएगी।
आपको यह भी बता दें कि बिहार में शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया इतनी पेचीदा रखी गई है कि हर बार नियोजन तो पूरा हो जाता है लेकिन सीट खाली रह जाती है। 2012 से एस्टेट की परीक्षा पास कर अभी अत्क नियोजन की आस में छात्र भटक रहे हैं। कई ने तो आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या तक कर ली है। कई छात्र अभी भी मानसिक प्रताड़ना के शिकार हो रहे हैं । लेकिन सरकार है कि सुनती ही नहीं है ! खैर अब आगे चाहे जो हो । लेकिन अगर तेजस्वी अपने को युवाओं का नेता बताते हैं तो उस बेलगाम अफसर पर कड़ी कारवाई करें । तभी माना जाएगा कि आप उन बेरोजगार अभ्यर्थियों के हितैषी हैं ।