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जयंती विशेष: भीमराव अंबेडकर का ऐसा रहा पूरा जीवन, जाति और वर्ण व्यवस्था से लड़ने के लिए पूरा जीवन झोंक दिया

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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट

बिहार नेशन: आज 14 अप्रैल को पूरा देश संविधान के रचयिता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की 132 वीं जयंती मना रहा है। यह हर वर्ष धूमधाम से हर वर्ष मनाई जाती है। बाबा साहब ने जाति व्यवस्था और हिंदू धर्म में व्याप्त वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए पूरा जीवन संघर्ष किया।ऐसे में इस दिन को सामाजिक बुराइयों से लड़ने, समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भीमराव आंबेडकर महार समुदाय के एक हिन्दू अछूत जाति महार समुदाय के थे ।

भीमराव अंबेडकर

डॉ भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव मऊ में हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। डॉ अम्बेडकर अपने माता-पिता की चौदह संतान में से सबसे छोटे थे।

डॉ. अंबेडकर.. दलितों और गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लोगों के नेता थे। उन्होंने 1936 में ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ के नाम से अपना पहला राजनीतिक दल बनाया था। इसके साथ ही उन्होंने दलितों के बीच अपना नेतृत्व कायम किया। इसी दौरान, भीमराव आंबेडकर ने कई सारे पत्रिकाओं को शुरू किया। उन्होंने सरकार की विधान परिषदों में दलितों के लिए विशेष प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे। हिंदू धर्म में फैली कुरीतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकार सन 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था।

भीमराव अंबेडकर ने वर्ष 1907 में मुंबई के एलफिन्स्टन हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एलफिन्स्टन कॉलेज में दाखिला लिया। बाबा साहेब ने वर्ष 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पढ़ाई पूरी की।

5 वीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान साल 1906 में जब वो 15 साल के हुए थे उनकी शादी 9 साल की रमाबाई से कर दी गई। वहीं डॉ. अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में हुआ। जबकि अप्रैल 1990 में डॉ. अंबेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार मिला।

वहीं आज देश की सबसे ऊंची अंबेडकर प्रतिमा का भी अनावरण हैदराबाद में है। बाबा साहेब की जयंती पर हैदराबाद के हुसैनसागल झील के करीब 125 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा। इसे सबसे ऊंची प्रतिमा होने का दावा भी किया जा रहा है।अंबेडकर की प्रतिष्ठित संरचना, जो राज्य के लिए एक और मील का पत्थर स्थापित करेगी, का दावा है कि यह भारतीय संविधान के वास्तुकार के लिए निर्मित देश की अब तक की सबसे ऊंची प्रतिमा है । जिसकी कुल ऊंचाई 175-फीट है, जिसमें 50 फीट संसद का आधार भी शामिल है।

जबकि मूर्ति का वजन 474 टन है, जबकि 360 टन स्टेनलेस स्टील का उपयोग मूर्ति की आर्मेचर संरचना के निर्माण के लिए किया गया था, मूर्ति की ढलाई के लिए 114 टन कांस्य का उपयोग किया गया था।

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