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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
.बिहार नेशन: संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि दाखिल खारिज में नाम होने से से ना तो ये साबित होता है कि आप ही जमीन के मालिक हैं और ना ही इस से आपका हक खत्म होता है। संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर एक सक्षम सिविल कोर्ट के जरिये ही तय किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि रेवेन्यू रिकार्ड में संपत्ति के दाखिल-खारिज से ना तो संपत्ति का मालिकाना हक मिल जाता है और ना ही समाप्त होता है। संपत्ति का मालिकाना हक सिर्फ एक सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा ही तय किया जा सकता है। रेवेन्यू रिकार्ड में दाखिल-खारिज सिर्फ वित्तीय उद्देश्य के लिए है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि रेवेन्यू रिकार्ड में सिर्फ एक एंट्री से उस व्यक्ति को संपत्ति का नहीं मिल जाता है जिसका नाम रिकार्ड में दर्ज हो। कोर्ट ने कहा कि कानून के तय प्रस्ताव के मुताबिक, दाखिल-खारिज से जुड़ी एंट्री व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, टाइटल या उसके हित में कोई फैसला नहीं करती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रेवेन्यू रिकार्ड में दाखिल-खारिज केवल वित्तीय उद्देश्य के लिए हैं।
कोर्ट ने कहा कि यदि संपत्ति के मालिकाना हक के संबंध में कोई विवाद है या विशेष रूप से जब वसीयत के आधार पर दाखिल-खारिज की मांग की जाती है, तो जो पार्टी अधिकार का दावा कर रही है उसे वसीयत को लेकर उपयुक्त सिविल कोर्ट का रुख करना होगा।
वहीं अपने अधिकारों को तय करना होगा। उसके बाद ही सिविल कोर्ट के समक्ष निर्णय के आधार पर आवश्यक दाखिल- खारिज की एंट्री की जा सकती है।
यह आदेश मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश को बरकरार रखते हुए आया है, जिसमें रीवा संभाग के अतिरिक्त आयुक्त द्वारा पारित आदेश को रद कर दिया गया था, जिसमें रेवेन्यू रिकार्ड में एक व्यक्ति के नाम को बदलने का निर्देश दिया गया था।
आपको बता दें कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को किसी संपत्ति को ट्रान्स्फर करने की जो प्रोसेस होती है उसे दाखिल खारिज या म्यूटेशन कहा जाता है। इसके बाद ही जमीन खरीदने वाला व्यक्ति कानूनी तौर पर उसका मालिक बनता है।