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जे.पी.चन्द्रा की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में कॉंग्रेस के अंदर गुटबाजी खूब देखने को मिल रहा है। भले ही बाहर से देखने में नहीं लग रही हो । लेकिन हकीकत राजनीति में यही होता है कि दिखता कुछ है और होता कुछ है। जब से बिहार प्रदेश कॉंग्रेस को नया प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह मिले हैं तभी से ही खटपट शुरू हो गई है। कहा जा रहा है अखिलेश प्रसाद सिंह राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं । वे अपने हिसाब से पार्टी को चलाना चाहते हैं। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष और बिहार कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास अपने अपने हिसाब से बिहार में पार्टी चलाना चाहते हैं। अब इसी बात को लेकर अंदरूनी कलह चल रही है।
वहीं पार्टी गुटों में बाँट गई है। एक तरफ कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और दूसरी तरफ हैं प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास। कांग्रेस से जुड़े नेता बताते हैं कि जब प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा थे, तब वे प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास को एयरपोर्ट पर रिसीव करने जाते थे। होटल में भी मिलने जाते थे, लेकिन अखिलेश प्रसाद सिंह के आते ही सब कुछ बदल गया है। अखिलेश केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। सेंट्रल से लेकर राज्य तक की राजनीति को समझते हैं। वे लालू प्रसाद जैसे बड़े समाजवादी नेता के करीबी भी रहे हैं। वो भक्तचरण को ज्यादा भाव नहीं दे रहे।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा के जमाने में कांग्रेस पार्टी सिमटती गई। उपचुनाव और एमएलसी चुनाव में पार्टी की कमजोरी साफ़ दिखी। भक्त चरण दास को तो लालू प्रसाद ने भक्चोन्हर तक कह दिया था। अब नए अध्यक्ष आने के बाद कांग्रेस तेवर दिखा रही है। नीतीश कुमार को चुनाव पूर्व पीएम फेस के रूप में नहीं स्वीकारना इसका उदाहरण है। इस तनातनी की शुरुआत तब हुई, जब कांग्रेस में एआईसीसी सदस्य और डेलिगेट्स बनाए गए। इसे बनवाने में प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास ने दिल्ली में बड़ी भूमिका निभाई। दूसरी तरफ यह लिस्ट सामने आने से अखिलेश प्रसाद सिंह से कई स्थानीय नेताओं की नाराजगी बढ़ गई। बिहार कांग्रेस कार्यालय में अखिलेश प्रसाद सिंह रेगुलर बैठते हैं, इसलिए लोग शिकायत इन्हीं से करते हैं।
जबकि बता दें कि डेलिगेट्स का चयन अखिलेश प्रसाद सिंह के अध्यक्ष बनने से पहले हुई थी। एआईसीसी मेंबर्स के नाम की घोषणा वाली लिस्ट अखिलेश प्रसाद सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद हुई। प्रक्रिया पहले से चल रही थी। अखिलेश से राय नहीं ली गई। अखिलेश प्रसाद सिंह के अध्यक्ष बने हुए चार-पांच दिन ही हुए थे और प्रखंड अध्यक्षों के नामों की घोषणा ऊपर से कर दी गई। हुआ यह कि प्रदेश अध्यक्ष तो नए थे, लेकिन प्रखंड अध्यक्ष पुराने वाले अध्यक्ष की टीम के लोग बन गए। उस लिस्ट पर मदन मोहन झा और प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास के हस्ताक्षर थे। तब से अंदर ही अंदर अखिलेश प्रसाद सिंह और भक्त चरण दास की नाराजगी बढ़ गई। यह ठीक है कि प्रक्रिया पहले से चल रही थी, लेकिन बिहार में संगठन अखिलेश प्रसाद सिंह को चलाना है इसलिए उनकी सहमति लेनी चाहिए थी।
कांग्रेस में ऐसे-ऐसे लोग एआईसीसी मेंबर बनाए गए, जिसमें कई कांग्रेस के कटु आलोचक हैं। बताया जा रहा है कि कई नाम किसी काम के नहीं है। अब इसमें फिल्टर का काम चल रहा है। लिस्ट में तो कुछ के फोन नंबर भी सही नहीं हैं। चर्चा है कि कर्नाटक चुनाव के बाद इस लिस्ट में फिल्टर का काम अखिलेश प्रसाद सिंह करवा सकते हैं। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश प्रसाद सिंह संगठन पर ज्यादा फोकस नहीं कर पा रहे। वे कई तरह की यात्रा में लगे रहे। पार्टी की ओर से दनादन कार्यक्रम इन्हें मिलता रहा। यह संयोग भी है कि चुनाव का समय नजदीक आ रहा है। इसलिए भी एक्टिविटी ज्यादा है। डॉ. मदन मोहन झा के समय इतनी एक्टिविटी नहीं थी। तब राहुल गांधी भी इतने एक्टिव नहीं दिखते थे।
अखिलेश को कांग्रेस से दिए कार्यक्रम को करने की मजबूरी है। इसमें ज्यादा समय निकल जा रहा है। अखिलेश प्रसाद सिंह ने जिस भव्यता के साथ कांग्रेस मुख्यालय में इफ्तार का आयोजन करवाया। उस पर लोगों ने माना कि ऐसा आयोजन तब हुआ करता था, जब कांग्रेस की ताकतवर सरकार हुआ करती थी। यानी वर्षों बाद ऐसा इफ्तार पार्टी का आयोजन हुआ है। बिहार में कांग्रेस के कई कार्यक्रम हुए। भारत जोड़ो यात्रा और हाथ जोड़ो यात्रा हुई। इन राजनीतिक कार्यक्रमों का फायदा कांग्रेस नहीं उठा पा रही है। मुद्दे जनता तक नहीं पहुंचा पा रही है। कई जिलों में जिलाध्यक्ष नहीं हैं और कई जिलाध्यक्षों को भविष्य नहीं दिख रहा। इसलिए वे निराशा के शिकार हो रहे हैं। संगठन मजबूत नहीं होने से कांग्रेस को ताकत बढ़ाने में बहुत दिक्कत हैं।
हालांकि इस मामले में प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह किसी भी प्रकार की गुटबाजी को नहीं मानते हैं । वे कहते हैं कि ऐसी कोई बात पार्टी के अंदर नहीं है। कर्नाटक चुनाव के बाद प्रदेश कमेटी का गठन हो जाएगा। यह मेरे स्तर से ही होना है। इसके पहले हम समझ रहे हैं कि किस जिला में कौन व्यक्ति महत्वपूर्ण है। मेरे काम करने की अलग शैली है। बहुत कार्य हो गया है यह काम भी हो जाएगा। निश्चिंत रहिए। उनका साफ़ कहना है कि लिस्ट बनाने से पहले यह देखा जा रहा है कि कौन कार्य कर रहा है और कौन नहीं कर रहा है।