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एक्सक्लूसिव: क्या दलितों के बीच जाकर जीतनराम मांझी ब्राह्मणों को अपशब्द कह अपनी राजनीतिक रोटियाँ नहीं सेंक रहे हैं ? यही सच्चाई है !
जे.पी.चन्द्रा का एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में इन दिनों विकास से अधिक बयान दिया जा रहा है। और बयान भी ऐसा दिया जाता है कि राज्य में बवाल मच जाता है। परंतु यह बयान आप कभी बिहार के विकास के लिए नहीं देखेंगे और न सुने होंगे । ये बयान या तो ये सोच समझकर चर्चा में रहने के लिए देते हैं या फिर राजनीतिक कैरियर को कहीं न कहीं डूबने का डर सताते रहता है तब देते हैं । ताजा मामला पूर्व सीएम और हम पार्टी के सुप्रीमों जीतन राम मांझी से जुड़ा है। हाल ही में एक कार्यक्रम में जीतन राम मांझी ने एक जातिवादी और विवादित बयान दिया है। उन्होंने साफ-साफ शब्दों में ब्राह्मणों को गाली दी। यहीं तक वे नहीं रूके। उन्होंने करोड़ों भारतीयों के आराध्य और पूजनीय देवी देवताओं को भी गालियाँ दी। वे दलितों को ब्राह्मणों को गालियाँ देकर समझा रहे थे।
लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर जीतन राम मांझी दलितों के इतने बड़े हिमायती हैं तो उन्होंने दलितों के लिए कौन सा कार्य किया है जिससे दलितों के उत्थान में मदद मिल रही है? उन्होंने अपने स्तर से कितने स्कूल खुलवाने का कार्य किया है जिसमें दलितों के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं । उन्होंने कितने लोगों को रोजगार दे दिया है जिससे दलितों का दुःख दूर हो गया । उन्होंने लंबे समय तक जिस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया वहाँ के दलितों की कितनी स्थिति सुधरी है? ये सभी जानते हैं । अगर मांझी इतने ही बड़े दलितों के हिमायती हैं तो वे अपने परिवार के बेटे , बेटी और समधन के लिए ही टिकट क्यों मांगते हैं । वे किसी दलित गरीब के बेटे -बेटी को क्यों नहीं टिकट देकर विधानसभा भेजते हैं । लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे । क्योंकि इनका जो हाल में दिया गया बयान है वह दलित हित के लिए कम और इनकी राजनीतिक पारी के लिए ज्यादा है।
ये कौन नहीं जानता है कि समाज में जातिवाद है। लेकिन क्या जातिवाद मिटाने का यही तरीका हो सकता है कि दूसरे लोगों के आस्थाओं पर चोट पहुंचाया जाए। क्या इसके जगह शिक्षा की लौ मांझी जी नहीं जला सकते थे? जरूर कर सकते थे। उनके पास उतनी संपत्ति है और पेंशन भी प्रत्येक माह मिलता है। उनके पुत्र मंत्री हैं । लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे । वे नहीं चाहेंगे कि उनके और उनके बेटे के बराबर कोई दलितों का नेता बने । यही हकीकत और सच्चाई है।
खैर पूर्व सीएम मांझी के इस बेतुके बयान के बाद बिहार की राजनीति गर्मा गई है। अब उनके इस बयान की चारों तरफ आलोचना हो रही है तो वे बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगा रहे हैं ।
वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि जीतनराम मांझी अपनी भाषा पर नियंत्रण रखें। जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल उन्होंने किया है, वह नहीं होना चाहिए। उपेंद्र ने कहा कि कोई भी व्यक्ति किस तरह की विचारधारा के साथ है इसे लेकर स्वतंत्रता है। पर इसका मतलब यह नहीं कि हम किसी जाति के खिलाफ वक्तव्य दें। हम लोगों ने ब्राह्मïणों के खिलाफ कभी नहीं कुछ कहा है। ब्राह्मïणवादी व्यवस्था के खिलाफ जरूर बोलते रहे हैं।
आपको बता दें कि कुछ दिन पहले बिहार के पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने कहा था कि पहले अनुसूचित जाति के लोग पूजा-पाठ में विश्वास नहीं करते थे। वे अपने देवता की ही पूजा करते थे। तुलसी जी हो या मां शबरी हों, मगर अब हर जगह हमलोग के टोला में भी सत्यनारायण भगवान की पूजा की जा रही है। इस पर भी शर्म नहीं लगती है कि पंडित …. (अपशब्द) आते हैं और कहते हैं हम नहीं खाएंगे बाबू, नगद ही दे दीजिए। मांझी इतने में ही नहीं रुके। उन्होंने कहा कि बाबा आंबेडकर मरने से पहले हिंदू धर्म में नहीं रहे, उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। हिंदू धर्म इतना खराब धर्म है। राम भगवान नहीं थे। रामायण में कुछ अच्छी बातें हैं, उसको पढ़ना चाहिए। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) नेता मांझी ने कहा कि मैं राम को भगवान नहीं मानता। हम बोलते हैं, तो लोग पागल बोलते हैं। मांझी ने अपने बयान पर सफाई भी दी।
उन्होंने यह भी कहा था कि वे पूजा-पाठ में विश्वास नहीं रखते हैं । अंबेडकर के सिद्धांत को मानते हैं । लेकिन बात यहाँ मांझी जी को यह समझने की जरूरत है कि केवल अंबेडकर के सिद्धांत पर राजनीति करने से दलितों की दशा और दिशा नहीं बदलेगा । उनके जैसा त्याग और समर्पण की भावना भी रखनी होगी । वे अक्सर शराब बंदी पर भी विवादित बयान देते रहते हैं और सरकार में भी रहते हैं । दो तरफा क्यों ? इन सभी बातों को और ऐसे नेताओं की नीतियों को आज समझने की जरूरत है।