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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में जातीय जनगणना की शुरुआत 7 जनवरी 2023 दिन शनिवार से की जा
चुकी है। सबसे पहले पहले चरण की जातीय गणना में मकानों की गिनती होगी। साथ ही उन मकानों पर
संख्या अंकित किया जा रहा है। वहीं वार्ड स्तर पर नजरी नक्शा तैयार किया जाएगा। वहीं एक फरवरी से आर्थिक स्थिति का भी आकलन किया जाएगा। बिहार में जाति आधारित गणना से सूबे की सियासत भी गरमायी हुई है। वहीं इस गणना को नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक भी माना जा रहा है। क्या है, जाति आधारित गणना के पीछे की वो सियासी वजह जिससे फायदे मिल सकते हैं, जानिए ।
बिहार में जब-जब जाति आधारित गणना की मांग उठी तो सूबे से लेकर केंद्र तक की सियासत गरमायी। कभी बिहार की सत्ता में एकसाथ एनडीए में रहे भाजपा और जदयू ने भी इसपर सहमति जताई। तो राजद विपक्ष में रहकर इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाती रही। आज सूबे में सियासी समीकरण बदले हैं और नीतीश कुमार महागठबंधन की ओर से सीएम हैं। राजद सत्ता में है तो भाजपा विपक्ष में बैठी है। इस बीच जातीय जनगणना का काम शुरू हो गया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा से जातीय जनगणना के पक्ष में रहे हैं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद सदन से लेकर सड़क तक इस मांग के साथ उतर चुकी है। केंद्र की भाजपा सरकार ने साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार अपनी ओर से जाति आधारित गणना नहीं कराएगी। लेकिन राज्य सरकार अपने खर्च से राज्य में करा सकती है। बिहार से एक प्रतिनिधिमंडल भी इस मांग को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी से मिला। जिसमें सभी दलों के नेता शामिल थे।
आपको बता दें कि बिहार में इसका लाभ राजद और जदयू को मिल सकता है। दरअसल, धरातल की बात करें तो पिछड़ी जातियों की ये मांग हमेशा से रही है कि सूबे में जातिगत जनगणना कराया जाए। हाल में आरक्षण विवाद के बीच नगर निकाय चुनाव कराकर नीतीश कुमार की सरकार ने अति पिछड़ों को साधा। इस लिहाज से देखा जाय तो आगामी चुनाव में इसका असर पड़ेगा। वोटरों को राजद और जेडीयू इसे आधार बनाकर इन वर्ग के वोटरों को लामबंद कर सकते हैं।