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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में बीजेपी ने लगभग अपने सहयोगी पार्टियों के लिए लोकसभा चुनाव की सीटें तय कर दी है। भले ही अभी आधिकारिक रूप से इस बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा है। लेकिन बीजेपी ने यह तय कर लिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में कितनी सीटों पर वह लड़ेगी और कितनी सीटें अपनी सहयोगी दलों को देगी।
दरअसल भाजपा ने 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में सीट शेयरिंग का पैटर्न लगभग तैयार कर लिया है। पार्टी 30 लोकसभा सीटों पर खुद अपने उम्मीदवार उतारेगी, जबकि 10 अन्य सीटों पर उसके सहयोगी यानी एनडीए में शामिल दलों के उम्मीदवार होंगे।हाल में नयी दिल्ली में हुई बिहार भाजपा की कोर कमेटी बैठक में इस मुद्दे पर गहन मंथन के बाद सहमति बनी है। बैठक में बिहार भाजपा प्रभारी विनोद तावड़े भी मौजूद थे।
बिहार में भाजपा के सहयोगी दल के रूप में वर्तमान में आधिकारिक रूप से एकमात्र राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) है। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति पारस केंद्र में मंत्री हैं। इनके अलावा चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनता दल (रालोजद) और मुकेश सहनी की वीआइपी से बातचीत लगभग तय है। जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा (हम) सेक्युलर से गठबंधन पर बातचीत जारी है।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक एनडीए सहयोगियों में लोजपा (रा) और रालोजपा को छह सीटें मिल सकती है।वर्तमान में रालोजपा के पांच और लोजपा रामविलास के एक सहित कुल छह सांसद हैं। दोनों पार्टियों का पुन: विलय होने पर इनको एकमुश्त छह और अलग-अलग रहने पर 4-2 या 3-3 के अनुपात में सीट मिल सकती है। उपेंद्र कुशवाहा की रालोजद को भी दो से तीन सीट का ऑफर है। एक-एक सीट हम और वीआइपी को दी जा सकती है। हालांकि सीट शेयरिंग पर अंतिम फैसला सहयोगी दलों के रुख पर निर्भर करेगा।
जानकारी के मुताबिक 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार में उतरने वाली एनडीए का स्वरूप इसी महीने तय हो सकता है। एनडीए में शामिल होने और सीट शेयरिंग को लेकर उपेंद्र कुशवाहा की दो बार अमित शाह से मुलाकात हो चुकी है। पशुपति पारस और चिराग पासवान के अंदरूनी विवाद के चलते रालोजपा और लोजपा (रा) में सीट बंटवारे को थोड़ी खटपट है। मुकेश सहनी ने बिहार सरकार का आवास छोड़ कर और केंद्रीय सुरक्षा स्वीकार कर एनडीए के प्रति झुकाव का स्पष्ट संदेश दे दिया है।
जबकि बिहार मंत्रिमंडल छोड़ने के बाद जीतन राम मांझी का भी एनडीए में जाना लगभग तय माना जा रहा है। और वे जल्द ही अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात कर अपनी बातों को रख सकते हैं। ऐसे में विपक्ष की बैठक के बाद 23 को जेपी नड्डा या 29 को अमित शाह की बिहार में होने वाली जनसभाओं में एनडीए का नया स्वरूप दिख सकता है।
वहीं जीतन राम मांझी अगर नीतीश सरकार से समर्थन वापस भी ले लें तो भी नीतीश सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्योंकि नीतीश सरकार के पास अभी भी महागठबंधन के कई दलों का पर्याप्त समर्थन है।