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सुखाड़ की दहलीज पर खड़ा है औरंगाबाद, कब शुरू होगी उत्तर कोयल सिंचाई परियोजना: मनोज कुमार सिंह
जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: बिहार में बारिश के हालात को देखते हुए एक बार फिर से सुखाड़ की चर्चा जोरों पर है। राज्य के कई ऐसे जिले हैं जहां बारिश औसत से बेहद ही कम हुई है, लेकिन राज्य के कुछ ऐसे भी जिले हैं जो प्रत्येक दो वर्षों में सुखाड़ का सामना करते हैं। ऐसा ही एक जिला है औरंगाबाद । औरंगाबाद में धान की खेती को लेकर ऊतर कोयल नहर जैसी बड़ी सिंचाई परियोजना शुरू हुई थी। परंतु दशकों बीत गए और आज भी यह सिंचाई परियोजना पूरी नहीं हुई है।
इस बारे में लोजपा, रामविलास पार्टी के बिहार प्रदेश महासचिव सह पूर्व विधानसभा प्रत्याशी रहे मनोज कुमार सिंह ने कहा कि वर्ष 2022 के बाद 2023 में भी औरंगाबाद में औसत से बेहद कम बारिश हुई है। नतीजा है कि औरंगाबाद के इलाके में अभी तक धनरोपनी भी शुरू नहीं हुई है। 70 के दशक में शुरू हुई सिंचाई परियोजनाओं पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च हो गए हैं, लेकिन आज तक परियोजना का काम पूरा नहीं हुआ। किसानों की कोई सुनने वाला नहीं है। जबकि पिछले तीन दशकों से लालू प्रसाद जी , नीतीश कुमार जी की सरकार सता में है। उसके पहले कॉंग्रेस ने सता का सुख लिया । लेकिन जब किसानों को सुख देने की बारी आई तो सभी ने मुंह मोड़ लिया। अब महागठबंधन के नेताओं की जिले में नींद खुली है और वे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दूसरे को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं। जबकि सत्ता में उनकी सरकार है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि यह महागठबंधन की सरकार चाहती ही नहीं है कि उत्तरी कोयल सिंचाई परियोजना शुरू हो। क्योंकि उन्हें पता है कि इससे किसानों के घर में खुशहाली आएगी तो फिर उनका झोला लेकर कौन चलेगा। हालांकि सांसद (सुशील सिंह) महोदय ने कई बार अपनी क्षमता के मुताबिक इस मामले में प्रयास किया है। उनपर आरोप बेबुनियाद लगाया जा रहा है। वे हमेशा इसे लेकर प्रयासरत रहे हैं । महागठबंधन के नेताओं द्वारा केवल सांसद सुशील सिंह को बदनाम कर राजनीति की जा रही है।
उन्होंने कहा कि सिर्फ चुनाव के समय ही महागठबंधन के नेताओं को उत्तर कोयल नहर सिंचाई परियोजना का ख्याल आता है और चुनाव बीत जाने के बाद इस परियोजना को वे भूल जाते हैं । मगर इस बार आगामी लोक सभा चुनाव में जनता इन I.N.D.I.A के बड़े नेताओं से यह सवाल जरूर पूछेगी कि आखिर अब तक उत्तर कोयल नहर से पानी हमारे खेतों में अभी तक क्यों नहीं पहुंची।
उन्होंने कहा कि यह सिंचाई परियोजना किसानों की जीवन रेखा हैं। इस परियोजना से औरंगाबाद के नवीनगर, कुटुंबा, देव, सदर, रफीगंज एवं मदनपुर प्रखंड के कई क्षेत्रों के किसानों को फायदा होगा। जबकि इससे गया, जहानाबाद और अरवल के लाखों किसानों की उम्मीदें जुड़ी हुई है। इसके पूरा होने से हजारों एकड़ की खेती में पानी की उपलब्धता हो सकेगी लेकिन दुर्भाग्य है कि इसे लेकर ज्यादातर राजनीति ही हुई है।
उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकारों ने तो इस परियोजना को दफन ही कर दिया था, लेकिन जब नरेन्द्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री बने तब 2014 के बाद इस परियोजना को पुनर्जीवित किया गया। इस परियोजना का दूसरा जन्म हुआ और उन्होंने सभी बाधाओं को दूर करते हुए केंद्रीय मंत्रिपरिषद से 1722 करोड़ रुपए से अधिक राशि की स्वीकृति दी। इसके बाद 5 जनवरी 2019 को प्रधानमंत्री के द्वारा इसका शिलान्यास हुआ। परियोजना को पूरा करने के लिए समय अवधि 36 महीने की थी लेकिन बीच में कोरोना आ गया और इस नहर में जो कंक्रीट लाइनिंग करनी थी उसमें बिहार सरकार ने अनावश्यक देर की और दो वर्ष बेकार गए।
श्री सिंह ने कहा कि इस मामले में दलगत भावना से ऊपर उठकर किसानों के हित की चिंता करने की जरूरत है । जबकि इस मामले में महागठबंधन के नेता निष्क्रिय दिखाई देते हैं। अगर इस नहर का निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा तो यहां से नहर के माध्यम से बिहार के गया, औरंगाबाद, जहानाबाद के किसानों के सुखी एवं प्यासी भूमि को पानी मिलेगा। और फसलें लहालहा उठेंगी। लोगों का जीवन स्तर सुधर जाएगा।
गौरतलब हो कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में 1970 में उतरी कोयल नहर परियोजना दक्षिण बिहार के किसानों की साथ सुखाड़ की समस्या देखकर 80 करोड़ की लागत से पारित हुआ था । यह परियोजना 1990 में पूरा करना था। लालफीताशाही के कारण इस परियोजना मे 900 से अधिक करोड़ खर्च हो गए लेकिन पांच दशक बाद भी यह योजना अधूरी है।