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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: इस वक्त देश में एक शब्द काफी चर्चा में है और वह शब्द है, वजूखाना। दरअसल यह वजूखाना शब्द तब से अधिक चर्चा में है जब से उत्तर प्रदेश के ज्ञानवापी मस्जिद का मामला सामने आया है। यह मुस्लिम धर्म से जुड़ा शब्द है। मिली जानकारी के अनुसार, सर्वे के दौरान इसी वजूखाने में वो आकृति मिली थी जिसे हिंदू पक्ष ने ‘शिवलिंग’ करार दिया है।
लेकिन अब लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि वजू खाने में क्या होता है? और सबसे पहले बात करते हैं कि वजू क्या है ?
मुस्लिम धर्म में नमाज अदा करने से पहले खुद को शुद्ध और साफ करने के विधि को वजू कहते हैं। वजू इस्लाम की एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लोग शरीर शुद्ध करने के लिए सिर,मुंह,पैर और दोनों हाथों को कुहनियों तक पानी से अच्छी तरह धोया जाता है। इस्लाम धर्म के जानकार बताते है कि वजू करने के बाद ही नमाज पढ़ी जा सकती है या अल्लाह की इबादत की जा सकती है।
वजू का अर्थ होता है कि साफ-सफाई करना। इस्लाम में वजू करना एक फर्ज है। हम जब अपने रब के सामने नमाज अदा करने के दौरान खड़े होते हैं तो उसके लिए साफ-सफाई की आवशयकता होती है। नमाज के समय जैसे हमारा दिल साफ होता है।वैसे ही हमारा शरीर भी बिल्कुल साफ होना चाहिए। इसके लिए वजू की प्रक्रिया लाजमी होती है।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि बिना वजू के दूसरी इबादतें की जा सकती हैं। रोजा रखना या और कुछ लेकिन नमाज पढ़ने के लिए वजू करना जरूरी है। यदि आप स्नान करके आये है तो वजू करना नहीं जरूरी है। अगर नमाज पढ़ने से पहले आप सिर से पांव तक नहा लिए हों तो आपको वजू करने की आवशयकता नहीं होती है और जब आप नहा लेते हैं. तो शरीर के वो हिस्से खुद ब खुद ही धुल जाते हैं।
मालूम हो कि वजू जब भी किया जाता है तो साफ-सुथरी जगहों पर किया जाता है। नहीं तो कुरान के मुताबिक गंदी जगह पर वजू को सही नहीं माना जाता है। वजू अशुद्ध गतिविधियों जैसे -शौच, पेशाब, नींद या खून बहने से टूट जाता है। वजू टूटने के बाद दोबारा कोई नमाज पढ़ना चाहे तो उसे दोबारा वजू करना होगा।