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शिक्षक दिलीप राज उर्फ अजीत कोरोना पीड़ितों और गरीबों की ऐसे कर रहे हैं मदद, पढ़ें…

कोरोना का कहर बिहार में ही नहीं बल्कि पुरे देश में जारी है. सरकार अपनी तरफ से जरूरतमंदों को पूरी मदद पहुंचा रही है. लेकिन इस कार्य में कई ऐसे लोग भी हैं जो अपनी परवाह न करते हुए लोगों की सहायता कर रहे हैं

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बिहार नेशन: कोरोना का कहर बिहार में ही नहीं बल्कि पुरे देश में जारी है. सरकार अपनी तरफ से जरूरतमंदों को पूरी मदद पहुंचा रही है. लेकिन इस कार्य में कई ऐसे लोग भी हैं जो अपनी परवाह न करते हुए लोगों की सहायता कर रहे हैं. ऐसे ही एक शख्स है जिनका नाम है दिलीप राज. ये औरंगाबाद जिले के देव में शिक्षक हैं. उन्होंने अपनी कहानी जब बयाँ की तो सुनकर लगा वाकई उनकी बातों से लोगों को सीख लेनी चाहिए . कुछ इस तरह से अपनी कार्यों का उन्होंने जिक्र किया. उन्हीं के शब्दों में, जानें…

पिछले एक वर्ष से इस कोरोना महामारी ने हमारी दुनिया एकदम से बदल दी है। हजारों लोगों की जान चली गई, लाखों लोग बीमार पड़े हुए हैं। इस महामारी ने लोगो को इस कदर विवश कर दिया है कि लोग अपने ही परिवार की अर्थी को कंधा देने से डर रहे हैं,वहीं दूसरी तरफ सड़क दुर्घटना या किसी अन्य घटना में लोग डर के कारण किसी की मदद तक नही कर रहे हैं। इसी क्रम में आज लगातार तीसरे दिन तीसरी घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया । पहली घटना परसो 29 अप्रैल को मेरे मित्र सुधीर सिंह की माँ का कोरोना से निधन हो जाना,सुनकर मैं स्तब्ध था कि उसी समय मेरे आंखों के सामने एक ऑटो वाले कि गलती के कारण एक मोटरसाइकिल सवार व्यक्ति गिर पड़ा और उसे काफी चोटें आईं,वह खुद से उठने में सछम नहीं था, मैंने देखा भीड़ इकठ्ठा हो गई लोग ऑटो वाले को गाली देने लगे,कुछ लोग विडीयो बनाने लगे लेकिन किसी ने जहमत नहीं उठाई उस व्यक्ति को उठाने की । चुकीं मैं तुरन्त ही अपने मित्र की माँ के निधन के खबर सुना था,मैं अंदर से काफी मर्माहत था लेकिन सामने की घटना को देखकर मुझसे ना रहा गया मैंने हिम्मत जुटाई उस व्यक्ति का मैने हाथ पकड़ कर उठाया और उनके हाथ,पैर एवं सर से बह रहे खून को साफ किया । ऐसा करते देख कर कुछ लोगो ने मेरा मजाक उड़ाया तो कुछ लोग व्यंग करते हुए चले गयें वहीं कुछ लोगो ने मेरे कार्य को सराहा और शाबाशी भी दी ।

दूसरी घटना कल 30 अप्रैल की है जब अपने मुहल्ले के एक कोरोना पीड़ित परिवार ने मुझसे ऑक्सीमीटर लाने का आग्रह किया,मैं जब मेडिकल खरीदने गया तो पहले तो उन्होंने देने से इन्कार किया पर कुछ देर आरजू विनती किया तो उन्होंने 3300 रुपये में ऑक्सीमीटर देने की बात कही । जिसकी कीमत सिर्फ 1100 रुपये है। कीमत सुनकर मैं दंग रह गया और सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसे समय मे भी कालाबजारी, आखिर कहाँ चली गई मानवता ? जिस देश मे कल तक लोग एक दूसरे के लिए जान तक दे देते थें, एक दूसरे के लिए मर मिटते थे,आज वहीं एक दूसरे की जान का सौदा करने लगें है।

आज 1 मई को तीसरी घटना ने तो मुझे झकझोर कर ही रख दिया। आज सुबह जब मैं दूध लेकर वापस घर की तरफ आ रहा था,तो सड़क पर कुछ भीड़ इक्कट्ठा देखा तो लोगों से जानने की कोशिश की क्या हुआ है तो किसी ने बताया कि एक बुजुर्ग महिला सड़क पर गिरी पड़ी है और चीख चीख कर रो रही है, लेकिन उस भीड़ में से किसी ने भी उस बुजुर्ग महिला की मदद नही कि, तब मैंने उनका हाथ पकड़ा,उठाया और उन्हें छाँव में बैठाकर पूछा कि क्या हुआ? तो सुनकर अचंभित रह गया, उन्होंने बताया कि मेरे घर मे शादी है और मैं बाजार जा रही हूँ पैदल चलने के कारण महज ठेंस लग गयी और गिर गईं, शरीर भारी होने के कारण खुद से नही उठ सकी,लेकिन भीड़ ने उनकी मदद नही की जिससे आहत होकर वो चिल्ला चिल्ला कर रोने लगी। उनकी इन बातों को सुनकर मैं काफी दुखी हुआ उन्हें पीने को पानी दिया बदले में उन्होंने मुझे ढेर सारा आशीर्वाद दिया, जिसे मैं जिन्दगी भर नहीं भुला सकता।

(दिलीप राज उर्फ अजीत, शिक्षक – देव)

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