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मधुबनी कांड का सच: ये जातीय नरसंहार नहीं है,आरोपियों में 18 ब्राह्मण,13 राजपूत एक ईबीसी और 2 एससी वर्ग से हैं
अब जबकि मधुबनी के बेनीपट्टी के महमदपुर में पांच राजपूतों की हत्या का मुख्य आरोपी प्रवीन झा गिरफ्तार कर लिया गया है तो धीरे-धीरे इस कांड पर से पर्दा भी हटने लगा है.
बिहार नेशन: अब जबकि मधुबनी के बेनीपट्टी के महमदपुर में पांच राजपूतों की हत्या का मुख्य आरोपी प्रवीन झा गिरफ्तार कर लिया गया है तो धीरे-धीरे इस कांड पर से पर्दा भी हटने लगा है. दरअसल इस मामले को जातीय रंग देने की भरपूर कोशिश की गई , जबकि कही से भी यह मामला जातिवाद नरसंहार का नही है. इसके पीछे की कहानी कुछ और है.
यह मामला मछली व्यापार से जुड़ा है. तालाब से मछली मारने को लेकर लगभग 5 महीना पहले नवंबर में पीड़ित परिवार के बड़े लड़के संजय सिंह और गैबीपुर के मुकेश साफी के बीच तालाब से मछली मारने को लेकर संघर्ष शुरू हुआ यहा.जिसमे पीड़ीत पक्ष का आरोपी संजय सिंह फिलहाल एस-एसटी एक्ट के तहत जेल में बंद है. इस कारण से उसकी जान भी बच गई.
लेकिन, देखा जाय तो जिस तरह से 29 मार्च को होली के दिन हुए इस खूनी संघर्ष के बाद नेताओं और कुछ लोगों ने राजपूत जाति के नरसंहार से इस घटना को जोड़कर देखा, वह कहीं से भी उचित नहीं प्रतीत होता है. क्योंकि आरोपियों में 18 ब्राह्मण हैं, जबकि 13 राजपूत भी शामिल हैं. एक ईबीसी और 2 एससी वर्ग से आते हैं. कुल नामजद आरोपियों की संख्या 34 है.
इससे साफ़ हो जाता है कि यह जातीय नरसंहार की घटना नहीं है. जबकि लगभग हरेक राजनीतिक दलों के राजपूत नेताओं ने इसे जाति से जोड़कर बयान देने की कोशिश की और मृतक के परिजनों से भेंट की. हो सकता है कि कुछ नेता वोट की राजनीतिक दवाब के कारण भी ऐसा किये हों.लेकिन अब परत दर परत मामला समय के साथ साफ़ होता जा रहा है.
इस घटना के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी ने भी पीड़ित परिवार से मुलाक़ात कर आर्थिक सहायता दी. अब इस मामले पर तेजस्वी का बयान भी आ गया है कि उनके प्रेशर के कारण सरकार ने प्रवीन झा की जल्दी में दबीश बनाकर गिरफ्तारी की. यह बात सही भी हो सकती है क्योंकि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है.खैर अब चाहे कैसे भी आरोपियों की गिरफ्तारी हो रही हो लेकिन पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाना सबसे बड़ी बात होगी.
{ ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं }
जे.पी.चंद्रा