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विशेष रिपोर्ट: आखिर, जांच एजेंसियां हमेशा विवादों में क्यों रहती हैं ? क्या केवल चुनिंदा लोगों के खिलाफ कारवाई करती है !

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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट

बिहार नेशन: भारत में एजेंसियां हमेशा से विवादों में रही हैं। गाहे-बगाहे उनपर पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं कि वह केवल विपक्षी पार्टियों के चुनिंदा लोगों के विरुद्ध कारवाई करती है। वह केंद्र में जिसकी भी सरकार होती है उसके इशारे पर कार्य करती है। इससे जांच एजंसियों के साख पर बट्टा लगता है। आमलोगों में इन जांच एजेंसियों के प्रति शंका पैदा होती है। हालांकि समय-समय पर बड़े कंपनियों के खिलाफ भी जांच एजेंसियों द्वारा छापेमारी की जाती रही है।इसी क्रम में पिछले शुक्रवार को जेट एयरवेज पर 538 करोड़ रुपये के बैंक घोटाले के आरोप के चलते जांच एजंसी ने छापेमारी की। यह देश की सबसे बड़ी निजी एयरलाइन रही है। जेट एयरबेज काफी विवादित रहा है। उसपर पहले से कई आरोप लग चुके हैं। पिछले कई महीनों से जेट एयरवेज के नये स्वामी जालान समूह को लेकर काफी विवाद भी चल रहा है। अब इन छापों से जेट एयरवेज के गड़े मुर्दे फिर से बाहर आने लग गए हैं। इसके साथ ही लंबित पड़ी शिकायतों पर बहुत देरी से कार्यवाही करने वाली जांच एजेंसियां भी सवालों के घेरे में आएंगी।

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ऐसा नहीं है कि निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एयरलाइन जेट एयरवेज ने केवल बैंक घोटाला ही किया है। इस समूह ने देश के नागर विमानन क्षेत्र में अपनी दबंगई के चलते कई नियमों की खुलेआम धज्जियां भी उड़ाई और नागर विमानन मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों ने आंखें बंद रखीं।

2014 से हमने जेट एयरवेज की गड़बड़ियों की सप्रमाण शिकायतें नागर विमानन मंत्रालय, डीजीसीए, गृह मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, सीवीसी और सीबीआई को दीं परंतु जेट एयरवेज के मालिक की ताकत के चलते इन शिकायतों पर कछुए की चाल पर ही कार्यवाही हुई। आखिरकार, जब यह कंपनी दिवालिया हुई तो सभी शिकायतें भी ठंडे बस्ते में चली गई। परंतु आज जब सीबीआई ने बैंक घोटाले की शिकायत पर कार्यवाही शुरू की तो सवाल उठा कि केवल बैंक घोटाले पर ही जांच क्यों?

जेट एयरवेज पर नागर विमानन कानून की धज्जियां उड़ाना। सोने और विदेशी मुद्रा की तस्करी करना। अपनी कंपनी के खातों में गड़बड़ी करना। कंपनी की सुरक्षा जांच को लेकर गड़बड़ी करना। गैर-कानूनी तरीके से विदेशी नागरिक को अपनी कंपनी में उच्च पद पर रखना। बिना जरूरी इजाजत के गैर-कानूनी ढंग से विमान को विदेश में उतारना। गैर-कानूनी तरीके से विदेशों में बेनामी संपत्ति अर्जित करना। अप्रवासन कानून तोड़ कर ‘कबूतरबाजी’ करना। पायलटों से तय समय सीमा से अधिक उड़ान भरवा कर यात्रियों की जान से खेलना।

इन मामलों पर जांच कब होगी? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और के अन्य नेता गत 9 वर्षो से हर मंच पर पिछली सरकारों को भ्रष्ट और अपनी सरकार को ईमानदार बताते आए हैं। मोदी जी दमखम के साथ कहते हैं ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’। उनके इस दावे का प्रमाण यही होगा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध जांच करने वाली ये एजेंसियां सरकार के दखल से मुक्त रहें।

जहां तक जांच एजेंसियों की बात है दिसम्बर, 1997 के सर्वोच्च न्यायालय के ‘विनीत नारायण बनाम भारत सरकार’ के फैसले के तहत सरकार की श्रेष्ठ जांच एजेंसियों को निष्पक्ष और स्वायत्त बनाने की मंशा से काफी बदलाव लाने वाले निर्देश दिए गए थे। इसी फैसले के तहत इन पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी विस्तृत निर्देश दिए गए थे। उद्देश्य था इन संवेदनशील जांच एजेंसियों की अधिकतम स्वायत्ता सुनिश्चित करना। इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि हमने 1993 में एक जनहित याचिका के माध्यम से सीबीआई की अकर्मण्यता पर सवाल खड़ा किया था।

तमाम प्रमाणों के बावजूद सीबीआई हिज्बुल मुजाहिद्दीन की हवाला के जरिए हो रही दुबई और लंदन से फंडिंग की जांच को दो बरस से दबा कर बैठी थी। उस पर भारी राजनैतिक दबाव था। इस याचिका पर ही फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त आदेश जारी किए थे, जो बाद में कानून बने परंतु पिछले कुछ समय से ऐसा देखा गया है कि ये जांच एजेंसियां सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले की भावना की उपेक्षा कर कुछ चुनिंदा लोगों के खिलाफ ही कार्यवाही कर रही है। इतना ही नहीं, इन एजेंसियों के निदेशकों को सेवा विस्तार देने के ताजा कानून ने तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी ही कर डाली है। नये कानून से आशंका प्रबल होती है कि जो भी सरकार केंद्र में होगी वो इन अधिकारियों को तब तक सेवा विस्तार देगी जब तक वे उसके इशारे पर नाचेंगे। शायद इसीलिए ये महत्त्वपूर्ण जांच एजेंसियां सरकार की ब्लैकमेलिंग का शिकार बन रही हैं? केंद्र में जो भी सरकार रही हो उस पर इन जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है। मौजूदा सरकार पर विपक्ष द्वारा यह आरोप लगातार लगाया जाता रहा है कि वो अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों या अपने विरुद्ध खबर छापने वाले मीडिया प्रतिष्ठानों के खिलाफ इन एजेंसियों का लगातार दुरुपयोग कर रही है। यहां सवाल सरकार की नीयत और ईमानदारी का है।

सर्वोच्च न्यायालय का वो ऐतिहासिक फैसला जांच एजेंसियों को सरकार के शिकंजे से मुक्त करने से संबंधित था जिससे वे बिना किसी दबाव के काम कर सकें क्योंकि सीबीआई को सर्वोच्च अदालत ने भी ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था। इसी फैसले के तहत इन एजेंसियों के ऊपर निगरानी रखने का काम केंद्रीय सतर्कता आयोग को सौंपा गया था। सीवीसी के पास ऐसा अधिकार है कि वो अपनी मासिक रिपोर्ट में जांच एजेंसियों की खामियों का उल्लेख करे। हमारा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि पिछले 9 वर्षो में हमने सरकारी या सार्वजनिक उपक्रमों के बड़े स्तर के भ्रष्टाचार के विरुद्ध सप्रमाण कई शिकायतें सीबीआई और सीवीसी में दर्ज कराई हैं पर उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। पहले ऐसा नहीं होता था। हमने जो भी मामले उठाए उनमें कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं रहा है। यह बात हर बड़ा राजनेता जानता है, और इसलिए जिनके विरुद्ध हमने अदालतों में लंबी लड़ाई लड़ी वे भी हमारी निष्पक्षता और पारदर्शिता का सम्मान करते हैं।

लेकिन इनसब के बावजूद अगर सरकार के पास किसी मंत्रालय और विभाग के विरूद्ध प्रमाण के साथ शिकायत आती है तो उसकी निष्पक्ष तरीके से जांच होनी चाहिए। जो सता पक्ष के साथ नहीं हैं उन्हें अपना विरोधी नहीं समझना चाहिए। चाहे वह मामला नीरव मोदी- विजय माल्या जैसे भगोड़े का हो या फिर केजरीवाल का हो। इन सभी पर जांच एजेंसियों को निष्पक्ष होकर जांच करनी चाहिए।

 

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