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औरंगाबाद: मरीज की मौत के बाद मगध सर्जिकल हॉस्पिटल एवं ट्रामा सेंटर में जमकर तोड़फोड़, डॉक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मी फरार
जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: औरंगाबाद शहर के महाराजगंज रोड स्थित एक निजी अस्पताल मगध सर्जिकल हॉस्पिटल एवं ट्रामा सेंटर हॉस्पिटल में रविवार को उस समय अफरा-तफरी मच गई जब एक मरीज की ऑपरेशन के दूसरे दिन ही मौत हो गई। इसके बाद आक्रोशित परिजनों ने डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों पर लापरवाही का आरोप लगाकर नर्सिंग होम में जमकर तोड़फोड़ की। अस्पताल के शीशे, कुर्सियाँ और कई सामानों को तोड़ डाला। वहीं इस घटना के बाद से अस्पताल के डॉक्टर व स्वास्थ्यकर्मी फरार हैं।
वहीं मृतक की पहचान 26 वर्षीय सोनू सिंह उर्फ नितेश बड़ेम ओपी थाना क्षेत्र के माधे गांव निवासी कृष्णा सिंह के पुत्र के रूप मे हुई हैं, जो पेशे से वकील हैं और शहर के सत्येंद्र नगर वार्ड नंबर छह में रहते हैं। बताया जा रहा है कि मृतक को बवासीर था जिसका ऑपरेशन करवाना था। इस कारण वह शनिवार की शाम में मगध सर्जिकल हॉस्पिटल एवं ट्रामा सेंटर में भर्ती हुआ था। जिसके बाद रात में 8 बजे क्लीनिक के डॉक्टर मनीष कुमार के द्वारा ऑपरेशन किया गया। सबकुछ ठीक था। वहीं रविवार को शाम में मरीज को पेशाब लगा। पेशाब के लिए परिजन स्वास्थ्यकर्मियों की सलाह पर बाथरूम ले गये । लेकिन इसी दौरान उसकी हालत बिगड़ने लगे। जिसके बाद परिजनों ने उसे बेड पर लिटाया। लेकिन कुछ ही देर में उसकी मौत हो गई।
घटना की सूचना मिलते ही थानाध्यक्ष एसबी शरण दल-बल के साथ अस्पताल पहुंचे और आक्रोशित परिजनों को शांत करने के लिए समझाने लगें । लेकिन आक्रोशित परिजन मानने को तैयार नहीं थे। वे सख्त कारवाई की मांग कर रहे थे। परिजनों का आरोप है कि चिकित्सक की लापरवाही से युवक की जान गई है । आक्रोशित लोगो ने राष्ट्रीय राजमार्ग 19 को जाम कर आगजनी कर कार्यवाई की मांग की। वहीं जाम से ट्रैफिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई ।
आपको बता दें कि राज्य में यह पहला मामला नहीं है। जब मरीज की मौत के बाद आक्रोशित परिजनों ने लापरवाही का आरोप लगाकर अस्पताल में तोड़फोड़ की हो। बिहार के अस्पतालों में प्रतिदिन मरीजों की जान चिकित्सकों की लापरवाही के कारण जाती है। अक्सर ये खबरें मीडिया की सुर्खियों में भी छाई रहती है। लेकिन सुधार नहीं होती है। इसका कारण स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की उदासीनता मानी जाती है। वहीं राज्य सरकार भी इस दिशा में कोई कठोर कारवाई नहीं कर पाती है। जबकि मरीजों की मौत के बाद अक्सर मृतक के परिजनों द्वारा अस्पतालों में तोड़फोड़ की जाती है और मामला कुछ दिन बाद शांत हो जाता है।