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एक्सक्लूसिव: पिता की जमीन पर किसका हक होता है, क्या हैं हिन्दू और मुस्लिमों में संपत्ति को लेकर नियम, जानें 

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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट

बिहार नेशन: भारत में अक्सर जमीन से जुड़े विवाद सामने आते रहते हैं। लोगों को जानकारी अपने अधिकार के बारे में न होने से अक्सर कई तरह के विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। इसका परिणाम कई बार यह होता है कि रिश्ते तक आपस में खराब हो जाते हैं। मामला हिंसक रूप तक ले लेता है। आप ऐसी अनगिनत घटनाएं देख रहे होंगे जिसमें लोग जान भी ले लेते हैं। इन्हीं जानकारियों को आसान भाषा में आज हम बताएंगे कि पिता की संपत्ति पर किसका अधिकार होता है।

भारत में अगर जमीन के सामान्य वर्गीकरण को देखें तो मुख्यत: किसी भी व्यक्ति के द्वारा दो प्रकार से जमीन अर्जित की जाती है।पहली वह जो व्यक्ति ने खुद से खरीदी है या उपहार, दान या किसी के द्वारा हक त्याग (अपने हिस्से की जमीन को न लेना) आदि से प्राप्त की है। इस तरह की संपत्ति को खुद अर्जित की हुई संपत्ति कहा जाता है। इसके अलावा दूसरे प्रकार की वह जमीन होती है जो कि पिता ने अपने पूर्वजों से प्राप्त की है। इस प्रकार से अर्जित की गई जमीन को पैतृक संपत्ति की श्रेणी में रखते हैं।

खुद अर्जित की गई जमीन पर अधिकार और उत्तराधिकार के क्या नियम हैं?

जहां तक पिता की खुद की अर्जित की गई जमीन का सवाल है तो, ऐसे में वह अपनी जमीन को बेचने, दान देने, उसके अंतरण संबंधी किसी भी तरह का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इसका उल्लेख भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम में मिलता है।

पिता द्वारा स्वयं अर्जित की गई जमीन से संबंधित उनके फैसले को कोई भी न तो प्रभावित कर सकता है और न ही कोई अन्य फैसला लेने के लिए बाध्य कर सकता है। ऐसे में अगर इस जमीन पर अधिकार के कानूनी पक्ष को देखें तो हम पाते हैं कि पता द्वारा खुद से अर्जित की गई जमीन पर किसी भी निर्णय को लेकर सिर्फ उनका ही अधिकार होता है।

अगर वो अपनी स्वअर्जित जमीन की वसीयत तैयार करते हैं और जिस किसी को भी उसका मालिकाना हक देना चाहते हैं तो इस जमीन पर उसी का अधिकार होगा। संबंधित व्यक्ति के बच्चे अगर इस मुद्दे को लेकर न्यायालय का रुख करते हैं तो वसीयत पूरी तरह से वैध होने की स्थिति में यह संभावना है कि इस मामले में कोर्ट पिता के पक्ष में ही फैसला सुनाएगा।

ऐसे में यह स्पष्ट है कि पिता की खुद से अर्जित की गई संपत्ति अंतरण से संबंधित अधिकार पिता के पास ही सुरक्षित हैं लेकिन इसका एक महत्वपूर्ण पक्ष यह कि अगर पिता द्वारा खुद से अर्जित की गई जमीन संबंधी कोई फैसला लेने से पहले ही उनका देहांत हो जाता है,तब बेटे और बेटियों को इस जमीन पर कानूनी अधिकार मिल जाता है।

संपत्ति को लेकर हिंदू और मुसलमानों के क्या हैं नियम

यहां यह बताना जरूरी है कि भारत में संपत्ति पर अधिकार को लेकर हिंदू और मुसलमानों के अलग-अलग नियम हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 में बेटे और बेटी दोनों का पिता की संपत्ति पर बराबर अधिकार माना जाता है। वो अलग बात है कि भारतीय सामाजिक परंपराओं के चलते अनगिनत बेटियां पिता की संपत्ति पर अपना दावा नहीं करतीं लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 उन्हें बेटों के बराबर अधिकार देता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ में इस तरह की संपत्ति पर अधिकार में बेटों को ज्यादा महत्व दिया गया है। न्यायालयों की प्रगतिशील सोच और बराबरी के अधिकार के चलते उन्हें भी धीरे-धीरे हिंदू बेटियों की तरह ही अधिकार दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। गौर करने वाली एक बात यह है कि पिता द्वारा अर्जित संपत्ति की वसीयत में अगर पिता अपनी बेटियों को हक नहीं देता तो ऐसे में न्यायालय भी बेटी के पक्ष में फैसला नहीं सुनाएगी। लेकिन पैतृक संपत्ति के मामले में स्थिति अलग है।

पैतृक संपत्ति को लेकर क्या हैं नियम?

आपको बता दें कि पिता पैतृक संपत्ति से जुड़े वसीयत नहीं बना सकता है। पैतृक संपत्ति को लेकर पिता फैसला स्वतंत्र रूप से नहीं ले सकता है। पैतृक संपत्ति पर बेटा बेटी दोनों का बरामद अधिकार है। गौरतलब हो कि 2005 के पहले बेटी को उत्तराधिकार नियम में संपत्ति में बराबर के अधिकार नहीं प्राप्त था। 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में महत्वपूर्ण संशोधन किये गये। उसके बाद बेटियों को भी बराबर का अधिकार प्राप्त हो गया।

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